मंगलवार, 29 अक्तूबर 2024

वृहद ब्रह्माण्ड भाग 1

 

1.     हमारा ब्रह्मांड नये नजरिए से , क्या हमारा ब्रह्मांड ऐसा है ?

 ब्रह्माण्ड कैसे बना ? यह कहाँ से आया ? यह कहाँ जा रहा है ? इत्यादि  अनेकों प्रश्न ऐसे हैं जिसका जबाब खोजने  के लिए मनुष्य  सदियों से प्रयासरत्त है . वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह के प्रयास  जारी  हैं ! वैज्ञानिक अपने-अपने सिधान्तों एवं प्रयोगों द्वारा प्रयास कर रहें हैं तो संत महात्मा लोग पौराणिक ग्रंथों एवं ध्यान का सहारा ले रहे हैं ! ब्रह्माण्ड क्या है ? कैसे बना ? कौन बनाया ? कहाँ से आ रही है एव कहाँ जा रही है ? इत्यादि इन प्रश्नों पर अलग-अलग मत्त हैं . अलग-अलग वैज्ञानिकों  का अलग-अलग मत्त हैं . उसी प्रकार अलग-अलग अध्यात्मिक ज्ञानियों का भी अलग-अलग मत हैं ! सभी धर्म अपने-अपने धर्मानुसार इस ब्रह्माण्ड की व्याख्या करते हैं ! चाहे धार्मिक व्याख्या हो या वैज्ञानिक , अभी तक किसी के पास कोई ठोस प्रमाण  नहीं है ! सबका  अपना-अपना दर्शन है !सबकी अपनी-अपनी फिलोसफी है ! वैज्ञानिक हेड्रन  कोलाईडर बनाकर ये पता लगा रहे हैं कि ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति कैसे हुई! अपने-अपने प्रयोगों पर विश्वाश किसी को नहीं है ! हो सकता है कि ब्रह्माण्ड कि जो वैज्ञानिक अवधारना है वह बिलकुल ही गलत हो ! मनुष्य प्रारंभ से ही ब्रह्माण्ड को प्रश्न भरी नजरों से देखता आया है , अपनी जड़ें तलाशने में लगा हुआ है . ये सोंचता है कि आखिर मैं आया कहाँ से हूँ ? ये ब्रह्माण्ड ये श्रृष्टि कहाँ से आयी ? इस ब्रह्माण्ड का स्वरुप कैसा है ?

 

हमारे ब्रह्माण्ड के कई नमूने बड़े-बड़े महापुरुषों एवं संतों तथा बैज्ञानिकों ने दिए हैं. महां विस्फोट से उत्पन्न big -bang  सिन्धांत का नमूना अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा कल्पना की गयी सबसे ससक्त नमूना माना जाता है ।  इस सिधांत के अनुसार , हमारा  ब्रह्माण्ड एक महा विस्फोट से शुरू  हुआ है  तथा विस्फोट के बाद से ही यह फैल रहा है ।  इस सिधांत के अनुसार हमारा ब्रह्माण्ड कुछ दिनों बाद पुनः सिकुड़ने लगेगा तथा पुनः बिग-बाँग की स्थिति  आएगी तथा पुनः महा विस्फोट होगा.
इस प्रकार बार बार बिग बांग होता रहेगा ।

आइये अब हम अपने ब्रह्मांड को नये नजरिए से देखते हैं :- 

मैंने ब्रह्माण्ड का एक नमूना का कल्पना किया है जिसे मैंने बृहद ब्रह्माण्ड का नाम दिया है. बृहद ब्रह्माण्ड की जो कल्पना की गयी है वह सिर्फ कोरी कल्पना नहीं है बल्कि उसका एक आधार है । एक गणितीय एवं तार्किक आधार है । वृहद ब्रह्मांड की परिकल्पना को मैं आगे बताऊंगा, अभी मै बृहद ब्रह्माण्ड की परिकल्पना  के कुछ रोचक परिणामों को बता रहा हूँ :-
 हमारा बृहद ब्रह्माण्ड का मॉडल ये बताता है कि :-

1.  हमारा ये ब्रह्मांड जिसमें हम सब रहते हैं , यह बृहद ब्रह्मांड मेंअवस्थित है।

2.  ये ब्रह्माण्ड कोई महा-विस्फोट से प्रारंभ नहीं हुआ है बल्कि यह बृहद ब्रह्माण्ड से निरंतर आते रहता है तथा पुनः यह उसी में यानि बृहद ब्रह्माण्ड में समां जाता है और यही प्रक्रिया चलते रहती है।

3.  हमारा ब्रह्माण्ड शुन्य और अनंत के मध्य ही अस्तित्व में है। शुन्य और अनंत के बाहर हमारे ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व नहीं है। अब आप सोंच रहे होंगे कि शून्य और अनंत के बाहर का क्या तात्पर्य है ? अनंत का तो कोई अंत ही नहीं है तो अनंत के बाहर का क्या मतलब है ? आगे मैं आपको बताऊंगा कि अनंत कैसे एक fix point है ।

4.  हमारे ब्रह्माण्ड का कोई भी पिंड गतिशील नहीं है बल्कि यह सिर्फ गतिशील मालूम पड़ते हैं. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चलचित्र में परदे पर कोई भी चित्र गतिशील नहीं होता , हमें सिर्फ गतिशील मालूम  पड़ते हैं.

5.  ब्लैक  होल  हमारे ब्रह्माण्ड का अंग नहीं है बल्कि वह बृहद ब्रह्माण्ड का अंग है . ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक कुवें का जल वास्तव में समुद्र का अंग है।  अन्दर-अन्दर कुवें का जल समुद्र से मिला हुवा है . कुवें में हम कितना हूँ पानी डालते जाएँ तो वह कभी भर नहीं सकता बल्कि अन्दर-अन्दर सागर में  चला जायेगा और सागर का अंग बन जायेगा. उसी प्रकार ब्लैक-होल में हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड जाते हैं तो वास्तव में वे बृहद ब्रह्माण्ड में चले जाते हैं और बृहद ब्रह्माण्ड का अंग बन जाते हैं . हमारे ब्रह्माण्ड के बाहर-बाहर बृहद ब्रह्माण्ड है जिसे हम कृष्ण सागर (Black Sea) कह सकते हैं। तथा बीच-बीच में ब्लैक-होल के रूप में कुवें कि तरह बृहद  ब्रह्माण्ड ही है.

6.  हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड  में गुरुत्वाकर्षण शक्ति , हमारे ब्रह्माण्ड का फैलना एवं ब्लैक-होल की आकर्षण शक्ति ये तीनों एक  ही कारण के परिणाम हैं और वो है बृहद ब्रह्माण्ड द्वारा किया जा रहा खिचाव ।  बृहद ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड में सबसे छोटे-छोटे कण आते रहते हैं ।  ये कण आपस में मिलकर बड़े आकर के पिंड का रूप धारण कर लेते है । यानि ये ग्रह,उपग्रह,तारे आदि बन जाते हैं । ये पिंड वृहद ब्रह्मांड द्वारा अपनी ओर आकर्षित किए जाते है जिसके कारण ये पिंड वृहद ब्रह्मांड कि ओर खिचे चले जा रहे हैं । ये सारे पिंड अंततः बृहद ब्रह्माण्ड में ही चले जाते हैं और उसमें विलीन हो जाते हैं जिस प्रकार वर्फ का टुकड़ा पानी मे विलीन हो जाता है। और यही प्रक्रिया चलते रहती है। इसे समझने के लिए वर्षा की बूंद का उदहारण ले सकते हैं . वर्षा का जल समुद्र से छोटे-छोटे कणों यानि वाष्प के रूप में आती है तथा आपस में मिलकर बूंद का रूप यानि बड़े पिंड का रूप धारण करती और अंततः नदियों एवं कुछ कुवों के माध्यम से पुनः सागर में चली जाती है. यही प्रक्रिया चलते रहती है।

7.  हमारे ब्रह्मांड के अलावे और भी कई ब्रह्मांड समानान्तर में यानि साथ साथ हो सकते हैं।  जैसे देव लोक,इन्द्रलोक इत्यादि ।

अगले विडियो मे हम वृहद ब्रह्मांड के स्वरूप एवं इसके कार्य प्रणाली की चर्चा करेंगे । धन्यवाद ॥

सोमवार, 5 अगस्त 2024

हमारे ब्रह्मांड की संरचना एवं कार्य प्रणाली

वृहद ब्रह्मांड नामक यह पुस्तक कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है बल्कि यह पुस्तक गणित, विज्ञान एवं तर्क पर आधारित है। इसे अंत तक पढ़ें और अपना कमेंट अवश्य भेजें।

बृहद ब्रह्मांड - 5

Any thing is nothing and Nothing is everything ::---------
आइए एक क्रिया करते हैं। धातु का बना हुआ एक छड़ी लेते हैं। छड़ी को बीच में पकड़कर उसे clockwise दिशा में घुमाते हैं। यदि छड़ी लंबवत है और हम उसे घड़ी की सुई की दिशा में घुमाते हैं तो छड़ी के ऊपर का हिस्सा दाहिने तरफ और नीचे का हिस्सा बाएँ तरफ जायेगा। छड़ी को जब घुमाते हैं तो उसका एक केन्द्र विंदु होगा जिसके ऊपर का हिस्सा दाहिने तरफ और नीचे का हिस्सा बाएं तरफ जायेगा। हम देखते हैं कि केन्द्र से ऊपर का धातु दाहिने तरफ और नीचे का धातु बाएं तरफ जायेगा।
आईये अब केन्द्र पर अवस्थित धातु कण पर विचार करें। केन्द्र पर स्थित धातु किधर जायेगा ? ऊपर का धातु दाहिने तरफ गया और नीचे का धातु बाएं तरफ गया, परन्तु केन्द्र पर स्थित धातु किधर गया ? कोई कह सकता है कि केन्द्र पर स्थित धातु कहीं नहीं गया बल्कि उसी जगह गोल घूम गया। परन्तु प्रश्न उठता  है कि यदि केन्द्र पर धातु का कोई कण है तो उसका भी व्यास होगा और उसका भी ऊपर का हिस्सा दाहिने तरफ तथा नीचे का हिस्सा बाएं तरफ जायेगा। यदि केन्द्र पर स्थित कण है तो उसका भी केन्द्र होगा। उस केन्द्र पर स्थित धातु किधर गया ? यदि केन्द्र पर धातु का कितना हूं छोटा कण होगा तो उसका द्रव्यमान होगा, उसका आयतन होगा, फिर उसका केन्द्र होगा और उस केन्द्र के ऊपर का हिस्सा दाहिने तरफ तथा नीचे का हिस्सा बाएं तरफ जायेगा। परन्तु प्रश्न वहीं के वहीं खड़ा हो जाता है कि केन्द्र पर स्थित धातु किधर गया। चूंकि विंदु की लम्बाई, चौड़ाई और मुटाई नहीं होती अतः हम मान सकते हैं कि केंद्र में कोई धातू नहीं है। और जब केन्द्र में कोई धातु ही नहीं है तो बाएं या दाएं जाने का प्रश्न ही नहीं है। यदि हम दूसरे विंदु को केन्द्र बनाते हैं तो वहां पर भी यही प्रश्न खड़ा होगा और हमें मानना पड़ेगा कि वहां पर भी धातू नहीं है। हम जानते हैं कि धातु के छड़ के किसी भी विंदु को केन्द्र बनाया जा सकता है और हर केन्द्र विंदु पर वही प्रश्न खड़ा होगा और हमें मानना पड़ेगा कि किसी भी केन्द्र विंदु पर धातु नहीं है। यानि कि धातु के छड़ में कहीं भी कोई धातु नहीं है। यानि कि वह छड़ धातु विहीन है। यानि कि वह धातु का छड़ कुछ नहीं है।
धातु की छड़ की तरह हम कोई भी पदार्थ को लेकर यही तर्क दें तो हमें मानना पड़ेगा कि कोई भी पदार्थ कुछ भी नहीं है। हम कह सकते हैं कि ANY THING IS NOTHING AND NOTHING IS EVERYTHING.

#बृहद ब्रह्मांड--4

हम घर में रहते हैं। हमारा घर धरती पर है। हमारी धरती हमारे ब्रह्मांड में स्थित है और हमारा ब्रह्माण्ड एक बृहद ब्रह्मांड में स्थित है जिसे हम SUPER UNIVERSE कह सकते हैं। हम एक उदाहरण स्वरूप कल्पना करते हैं:- मान लेते हैं कि एक बर्फ का ढेला है जो कि पानी के बीच में है। बर्फ के चारो ओर बड़े आकार में पानी का गोला है। पानी के गोले के चारो तरफ हवा का गोला है। हवा के गोले के चारो तरफ रिक्त आकाश का गोला है। यानि बर्फ पानी में है, पानी हवा में है और हवा रिक्त आकाश में है। यहां यदि हम बर्फ को अपनी पृथ्वी मान लें तो पानी हमारे वायुमंडल की तरह है और रिक्त आकाश बृहद ब्रह्मांड की तरह।
हमारी धरती, अन्य ग्रह, नक्षत्र इत्यादि अन्य सभी पिंड हमारे ब्रह्मांड में विचरण कर रहे हैं। हमें दिखाई देने वाला हर चीज,हमें महशुस होने वाली हर चीज, हमें सुनाई देने वाली हर आवाज़, यहां तक कि हमें दिखाई नहीं देने वाली चीजें भी सभी हमारे ब्रह्मांड में अवस्थित हैं। हम या कोई भी भेाैतिक पिंड सभी हमारे ब्रह्मांड के पंच तत्वों से बना हुआ है और सभी भौतिक पदार्थ हमारे ब्रह्मांड के अंश हैं। कोई भी भौतिक पदार्थ हमारे ब्रह्मांड के अंश से उत्पन्न होता है और समय बीतने के साथ समाप्त हो कर पुनः ब्रह्मांड में मिल जाता है। ब्रह्माण्ड के कणों से आकृति धारण करना और पुनः ब्रह्माण्ड में ही मिल जाना, यही प्रक्रिया चलते रहती है। 
हमारे ब्रह्मांड के सबसे छोटे कण जो हमारे ब्रह्मांड के पिंडों को बनाते हैं, वे बृहद ब्रह्मांड से आते हैं और अंत में पुनः बृहद ब्रह्मांड में ही चले जाते हैं और यही प्रक्रिया चलते रहती है।
समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं:-
आकाश में पानी वाले बादल उड़ते हैं, उन बादलों में कभी कभी ओले (बर्फ के टुकड़े) भी रहते हैं। आकाश में जो बादल होते हैं, वे कहां से आते हैं? वे बादल समुद्र से आते हैं। समुद्र से वाष्प उड़ते हैं और पानी के छोटे कण का रूप धारण करते हैं और पानी के कण के रूप में प्रकट होते हैं। अब यहां पर बादलों में स्थित ओलों को हम ब्रह्मांड के पिंडों के रूप में मानते हैं, यानि ये ओले ग्रह नक्षत्र के सदृश हैं, तो पूरा बादल हमारे ब्रह्मांड के सदृश है और ये समुद्र बृहद ब्रह्मांड के सदृश। हम जानते हैं कि ये ओले समुद्र से आए हैं और अंततः समुद्र में ही विलीन हो जाएंगे। हम यूं कहें कि पूरा बादल ही समुद्र से आया है और अंततः समुद्र में ही चला जायेगा।
उसी प्रकार हमारा ब्रह्मांड भी बृहद ब्रह्मांड से आया है और अंततः उसी में यानि बृहद ब्रह्मांड में चला जाएगा।
आकाश में नए बादलों के झुंड बनते रहते हैं और अंत में सागर में वापस चले जाते हैं। आकाश में बादल हमेशा यानि निरन्तर बनते रहते हैं और अंत में सागर में जाते रहते हैं। यह प्रक्रिया चलते रहती है। उसी प्रकार हमारा ब्रह्मांड (ब्रह्मांड के कण) प्रकट होते रहता है और हमारे ब्रह्मांड के अंश पुनः बृहद ब्रह्मांड में जाते रहते हैं और यह प्रक्रिया चलते रहती है। यानि हमारा ब्रह्मांड निरन्तर बना रहता है , सिर्फ हमारे ब्रह्मांड के पिंड बदलते रहते हैं। नए कण प्रकट होते रहते हैं, पिंड का रूप धारण करते हैं और पुराने पिंड समाप्त होते रहते हैं।

#वृहद् ब्रह्माण्ड एक नमूना -3

हमारे ब्रह्माण्ड का नमूना :--- 
हमारा ब्रह्माण्ड वास्तव में बृहद ब्रह्माण्ड में अवस्थित है। बृहद ब्रह्माण्ड में हमारे ब्रह्माण्ड के अलावा अन्य और भी ब्रह्माण्ड हो सकते हैं। 
बृहद ब्रह्माण्ड में आकाश (space) के छोटे- छोटे pockets हैं । ये पॉकेट कई प्रकार के हैं। इन्हीं pockets में से सामान ऊर्जा वाले ख़ास pockets में हमारा ब्रह्माण्ड स्थित है। बृहद ब्रह्माण्ड के ये pockets स्थिर होते हैं। बृहद ब्रह्माण्ड का एक पॉकेट का आकार हमारे ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे particle के बराबर है। एक पॉकेट से छोटा पार्टिकल हमारे ब्रह्माण्ड में नहीं रह सकता है। उससे छोटा होने पर वह बृहद ब्रह्माण्ड में चला जायेगा। हर पॉकेट में स्थित कण (particle) ऊर्जा के रूप में स्थित हैं। गति के समय ये particle यानि ऊर्जा एक पॉकेट से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। पुनः उस पॉकेट से गायब होकर उससे आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। इस तरह से कोई पार्टिकल गति करता है। यही कण आपस में मिलकर बड़े कण का रूप धारण करते हैं तथा बड़े बड़े पिंड का निर्माण करते हैं। जब भी कोई पिंड move करता है तो उसका हर पार्टिकल (उर्जा) अपने पॉकेट से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। जैसे TV के स्क्रीन पर कोई भी चित्र सीधे move नहीं करता है बल्कि चित्र का हर पार्ट अपने स्थान से गायब होकर आगे प्रगट हो जाता है और दर्शक को लगता है कि चित्र move कर रहा है। उसी प्रकार हमारे इस त्रिआयामी ब्रह्मांड में किसी पिंड का हर particle (उर्जा) अपने स्थान(पॉकेट) से गायब होकर उससे आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाता है। गायब होने तथा प्रकट होने की प्रक्रिया तेजी से लगातार होती है और हमें लगता है कि वही पिंड आगे बढ़ रहा है। परन्तु वास्तव में वही पिंड आगे नहीं बढ़ रहा है बल्कि उसी तरह का (similar) पिंड आगे- आगे प्रगट होता जा रहा है। हमलोग भी जब गति करते हैं तो हमारे शरीर का हर पार्टिकल, जो कि अलग- अलग पॉकेट में स्थित है, अपने स्थान से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाती है। यानि हमारा शरीर गायब होकर नया शरीर प्रकट हो जाता है और हमें लगता है कि हमारा शरीर वही है जो पहले था। मैं यानि आत्मा जो शरीर को अनुभव करता है वह हमारे ब्रह्माण्ड के हर स्थान पर मौजूद है। जैसे ही शरीर वहां प्रकट होता है मैं (आत्मा) उसे यानि शरीर को अनुभव करने लगता है। हमारा निष्कर्ष है कि हमारे ब्रह्माण्ड का कोई भी पिंड गतिशील नहीं है बल्कि स्थिर है। हमें सिर्फ गतिशील मालूम पड़ते हैं। आत्मा रूपी तरंग पूरे ब्रह्मांड में स्थित है और हर भौतिक पदार्थ को अनुभव करता है तथा उसे शरीर के अनुरूप क्रियाशील करता है। वही आत्मा एक पेड़ के शरीर को पेड़ जैसा क्रियाशील करता है और हमारे शरीर को हमारे जैसा क्रियाशील करता है। वही आत्मा एक पत्थर को पत्थर की तरह, पानी को पानी की तरह, गैस को गैस की तरह क्रियाशील करता है। 
बृहद ब्रह्माण्ड Neutral अवस्था में है।हमारे ब्रह्माण्ड के कण बृहद ब्रह्माण्ड से आते हैं। जैसे ही कोई कण बृहद ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड में आता है,बृहद ब्रह्माण्ड में रिक्तता पैदा हो जाती है। बृहद ब्रह्माण्ड में रिक्तता पैदा होने के कारण वह हमारे ब्रह्माण्ड के कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को बृहद ब्रह्माण्ड अपनी ओर आकर्षित करता है जिसे हम गुरुत्वाकर्षण के रूप में अनुभव करते हैं। हमारे ब्रह्माण्ड के pockets पूरे वृहद ब्रह्माण्ड में नहीं हैं बल्कि कुछ क्षेत्र तक सीमित हैं, उसके परे सिर्फ वृहद ब्रह्माण्ड है। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के बाहर- बाहर वृहद ब्रह्माण्ड है जहां से वह हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है जिसके कारण हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बाहर की ओर जा रहे हैं और हमें लग रहा है कि हमारा ब्रह्माण्ड फैल रहा है। वास्तव में हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बाहर की ओर जा रहे हैं और वृहद ब्रह्माण्ड में विलीन होते जा रहे हैं। हमारे ब्रह्माण्ड के पूरे क्षेत्र में आकाश पॉकेट्स लगातार नहीं हैं बल्कि कुछ स्थानों पर ये पॉकेट मौजूद नहीं हैं यानि वहां बृहद ब्रह्माण्ड है जो कि हमें black hole के रूप में दिखाई देते हैं। ब्लैक होल भी वास्तव में बृहद ब्रह्मांड ही है और हमारे ब्रह्मांड का कोई भी पिंड उसकी ओर आकर्षित होता है और उसमें जाकर विलीन हो जाता है। हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बृहद ब्रह्मांड से आते हैं और अंततः फिर बृहद ब्रह्मांड में ही चले जाते हैं, अधिकांश पिंड बाहर की ओर स्थित बृहद ब्रह्मांड (कृष्ण सागर) में चले जाते हैं और कुछ पिंड black hole (कृष्ण विवर) से बृहद ब्रह्मांड में चले जाते हैं। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक वर्षा के बूंद की गति है।हम जानते हैं कि समुद्र से पानी वाष्प बनकर आकाश में जाती है, वहां वाष्प के कण आपस में मिलकर छोटे जलकण बनते हैं तथा जल कण मिलकर वर्षा के बूंद का रूप धारण करते हैं, ये बूंद पृथ्वी की ओर आकर्षित होकर गिरती है। ये अधिकांश बूंद नदियों के माध्यम से समुद्र में चली जाती है तथा कुछ बूंद कुओं के माध्यम से अंदर अंदर समुद्र में चली जाती है। यानि जो पानी सागर से वाष्प बनकर निकली थी पुनः सागर में पहुंच जाती है। हम कल्पना कर सकते हैं कि वर्षा के बूंद पर यदि कोई सभ्यता विकसित हो जाय तो वह सोचेगा कि हमारा यह बूंद (पृथ्वी) कहां से आया और कहां जा रही है। वह ज्यादा दूर तक नहीं देख सकता क्योंकि उसकी पहुंच अपने बूंद के आसपास तक ही है, जबकि हम जानते हैं कि वह बूंद सागर से आया है और पुनः सागर में ही चला जायेगा। उसी प्रकार हमारी पहुंच भी अपने बूंद यानि पृथ्वी के आस पास तक ही सीमित है और हम दूर तक नहीं देख पा रहे हैं।हम सिर्फ अपने ब्रह्मांड के पॉकेट में अवस्थित चीजों को ही देख सकते हैं या महशूस कर सकते हैं। बृहद ब्रह्मांड को हम नहीं देख सकते अतः यदि हम वृहद ब्रह्मांड की ओर देखेंगे तो हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा, ठीक उसी प्रकार लगेगा जैसे अंधेरे में आंख बंद कर लेने के बाद लगता है। यानि सिर्फ अंधेरे का सागर लगेगा । हम black hole को भी नहीं देख सकते अतः यह सिर्फ अंधेरा spot की तरह नजर आता है। ब्लैक होल हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है क्योंकि ब्लैक होल भी वास्तव में बृहद ब्रह्मांड ही है और वह हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है। वृहद ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड के pockets में निरंतर कण (उर्जा) आते रहते हैं और नए- नए पिंडों का निर्माण होते रहता है तथा ब्रह्माण्ड के बाहर की ओर आकर्षित होकर वृहद ब्रह्माण्ड में जाकर विलीन हो जाते हैं। यही प्रक्रिया चलते रहती है। 
हमारे ब्रह्माण्ड के अलावा अन्य ब्रह्माण्ड भी हो सकते हैं। यानि अलग ऊर्जा वाले पॉकेट समूहों में अलग दूसरा ब्रह्माण्ड अवस्थित हो सकता है। हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड सिर्फ अपने ही ब्रह्माण्ड के पॉकेट में रह सकते हैं अतः दूसरे ब्रह्माण्ड के बारे में हमें कोई बात पता नहीं चल सकता। हो सकता है जहां हमारी धरती है वहीं पर दूसरे ब्रह्माण्ड का कोई पिंड हो परन्तु अलग अलग phase में रहने के कारण एक दूसरे को महसूस नहीं कर सकते। यानि बृहद ब्रह्माण्ड के एक ही जगह पर हमारे ब्रह्माण्ड के साथ साथ कई अन्य ब्रह्माण्ड अवस्थित हो सकते हैं। पृथ्वी लोक के अलावा इन्द्र लोक, शिव लोक, विष्णु लोक इत्यादि हो सकते हैं। हर पल हमारे ब्रह्माण्ड में कणों का जन्म हो रहा है तथा पहले के कण बृहद ब्रह्माण्ड में विलीन भी होते जा रहे हैं। यही प्रक्रिया चलते रह रही है। हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर अपना शरीर बदलते हुए जारी रहेगी। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बदलते रहेंगे, नए पिंड बनते रहेंगे और पुराने पिंड विलीन होते रहेंगे। हमारा ब्रह्मांड निरन्तर जारी रहेगा। हमारा सौर मंडल एक दिन कृष्ण सागर में यानि बृहद ब्रह्मांड में विलीन हो जाएगा परन्तु यह ब्रह्मांड बना रहेगा, नए पिंड, नए ग्रह, नये सौर मंडल तैयार होते रहेंगे। नई सभ्यता विकसित होती रहेगी। पुनः बृहद ब्रह्मांड में जाकर विलीन होते रहेंगे। यही प्रक्रिया चलते रहेगी। यानि हमारा ये ब्रह्माण्ड निरंतर रहेगा, हमारे ब्रह्माण्ड के आकाश पॉकेट्स रहेंगे परन्तु हमारे ब्रह्मांड के पिंड बदलते रहेंगे। हमारे ब्रह्मांड का कोई भी पिंड बृहद ब्रह्मांड में ठीक उसी प्रकार विलीन होता है जिस प्रकार एक बर्फ का ढेला पानी में विलीन हो जाता है। जिस प्रकार बर्फ पानी में विलीन होकर अपना अस्तित्व खो देती है उसी प्रकार हमारे ब्रह्मांड के पिंड बृहद ब्रह्मांड में विलीन होकर अपना अस्तित्व खो देती है और बृहद ब्रह्मांड का अंग बन जाती है।

#वृहद् ब्रह्माण्ड एक नमूना -2

हमारे ब्रह्माण्ड के कई नमूने बड़े-बड़े महापुरुषों एवं संतों तथा बैज्ञानिकों ने दिए हैं. महां विस्फोट से उत्पन्न big -bang  सिन्धांत का नमूना अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा कल्पना की गयी सबसे ससक्त नमूना माना जाता है. इस सिधांत के अनुसार , हमारा  ब्रह्माण्ड एक महा विस्फोट से शुरू  हुआ है . तथा विस्फोट के बाद से ही यह फैल रहा है. इस सिधांत के अनुसार हमारा ब्रह्माण्ड कुछ दिनों बाद पुनः सिकुड़ने लगेगा तथा पुनः बिग-बाँग की स्थिति  आएगी तथा पुनः महा विस्फोट होगा.
परन्तु मैं इसे नहीं  मानता .
मैंने ब्रह्माण्ड का एक नमूना का कल्पना किया है जिसे मैंने बृहद ब्रह्माण्ड का नाम दिया है. बृहद ब्रह्माण्ड की जो कल्पना की गयी है उसे मै बाद में लिखूंगा . अभी मै बृहद ब्रह्माण्ड के कुछ रोचक परिणामों को नीचे दे रहा हूँ :-
 हमारा बृहद ब्रह्माण्ड मॉडल ये बताता है कि
१.ये ब्रह्माण्ड कोई महा-विस्फोट से प्रारंभ नहीं हुआ है बल्कि यह बृहद ब्रह्माण्ड से निरंतर आते रहता है तथा पुनः यह उसी में यानि बृहद ब्रह्माण्ड में समां जाता है और यही प्रक्रिया चलते रहती है .
२. हमारा ब्रह्माण्ड शुन्य और अनंत के मध्य ही अस्तित्व में है . शुन्य और अनंत के बाहर हमारे ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व नहीं है .
३. हमारे ब्रह्माण्ड का कोई भी पिंड गतिशील नहीं है बल्कि यह सिर्फ गतिशील मालूम पड़ते हैं. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चलचित्र में परदे पर कोई भी चित्र गतिशील नहीं होता , हमें सिर्फ गतिशील मालूम  पड़ते हैं.
४. ब्लैक  होल  हमारे ब्रह्माण्ड का अंग नहीं है बल्कि वह बृहद ब्रह्माण्ड का अंग है . ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक कुवें का जल वास्तव में समुद्र का अंग है . अन्दर-अन्दर कुवें का जल समुद्र से मिला हुवा है . कुवें में हम कितना हूँ पानी डालते जाएँ तो वह कभी भर नहीं सकता बल्कि अन्दर-अन्दर सागर में  चला जायेगा और सागर का अंग बन जायेगा. उसी प्रकार ब्लैक-होल में हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड जाते हैं तो वास्तव में वे बृहद ब्रह्माण्ड में चले जाते हैं और बृहद ब्रह्माण्ड का अंग बन जाते हैं . हमारे ब्रह्माण्ड के बाहर-बाहर बृहद ब्रह्माण्ड है जिसे हम कृष्ण सागर (Black Sea) कह सकते हैं। तथा बीच-बीच में ब्लैक-होल के रूप में कुवें कि तरह बृहद  ब्रह्माण्ड ही है.
५. हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड  में गुरुत्वाकर्षण शक्ति , हमारे ब्रह्माण्ड का फैलना एवं ब्लैक-होल की आकर्षण शक्ति ये तीनों एक  ही कारण के परिणाम हैं और वो है बृहद ब्रह्माण्ड द्वारा किया जा रहा खिचाव . हमारे ब्रह्माण्ड  के पिंड छोटे-छोटे कणों के रूप में बृहद ब्रह्माण्ड से आ रहे हैं तथा आपस में मिलकर बड़े आकर के पिंड का रूप धारण कर लेते है तथा पुनः बृहद ब्रह्माण्ड में ही चले जाते हैं . और यही प्रक्रिया चलते रहती है. इसे समझने के लिए वर्षा की बूंद का उदहारण ले सकते हैं . वर्षा का जल समुद्र से छोटे-छोटे कणों यानि वाष्प के रूप में आती है तथा आपस में मिलकर बूंद का रूप यानि बड़े पिंड का रूप धारण करती और अंततः नदियों एवं कुछ कुवों के माध्यम से पुनः सागर में चली जाती है. यही प्रक्रिया चलते रहती है .
बृहद ब्रह्माण्ड का मॉडल  बाद में यानि अगले भाग में........................

#वृहद् ब्रह्माण्ड एक नमूना - १

    ब्रह्माण्ड कैसे बना ? यह कहाँ से आया ? यह कहाँ जा रहा है ? इत्यादि  अनेकों प्रश्न ऐसे हैं जिसका जबाब खोजने  के लिए मनुष्य  सदियों से प्रयासरत्त है . वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह के प्रयास  जारी  हैं ! वैज्ञानिक अपने-अपने सिधान्तों एवं प्रयोगों द्वारा प्रयास कर रहें हैं तो संत महात्मा लोग पौराणिक ग्रंथों एवं ध्यान का सहारा ले रहे हैं ! ब्रह्माण्ड क्या है ? कैसे बना ? कौन बनाया ? कहाँ से आ रही है एव कहाँ जा रही है ? इत्यादि इन प्रश्नों पर अलग-अलग मत्त हैं . अलग-अलग वैज्ञानिकों  का अलग-अलग मत्त हैं . उसी प्रकार अलग-अलग अध्यात्मिक ज्ञानियों का भी अलग-अलग मत हैं ! सभी धर्म अपने-अपने धर्मानुसार इस ब्रह्माण्ड की व्याख्या करते हैं ! चाहे धार्मिक व्याख्या हो या वैज्ञानिक , अभी तक किसी के पास कोई ठोस प्रमाण  नहीं है ! सबका  अपना-अपना दर्शन है !सबकी अपनी-अपनी फिलोसफी है ! वैज्ञानिक हेड्रन  कोलाईडर बना रहे हैं ये पता लगाने का लिए कि ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति कैसे हुई ! अपने-अपने प्रयोगों पर विश्वाश किसी को नहीं है ! हो सकता है कि ब्रह्माण्ड कि जो वैज्ञानिक अवधारना है वह बिलकुल ही गलत हो ! मनुष्य प्रारंभ से ही ब्रह्माण्ड को प्रश्न भरी नजरों से देखता आया है , अपनी जड़ें तलाशने में लगा हुआ है . ये सोंचता है कि आखिर मैं आया कहाँ से हूँ ? ये ब्रह्माण्ड ये श्रृष्टि कहाँ से आयी ? इस ब्रह्माण्ड का स्वरुप कैसा है ? शेष अगले  भाग में ..........