सोमवार, 5 अगस्त 2024

#वृहद् ब्रह्माण्ड एक नमूना -3

हमारे ब्रह्माण्ड का नमूना :--- 
हमारा ब्रह्माण्ड वास्तव में बृहद ब्रह्माण्ड में अवस्थित है। बृहद ब्रह्माण्ड में हमारे ब्रह्माण्ड के अलावा अन्य और भी ब्रह्माण्ड हो सकते हैं। 
बृहद ब्रह्माण्ड में आकाश (space) के छोटे- छोटे pockets हैं । ये पॉकेट कई प्रकार के हैं। इन्हीं pockets में से सामान ऊर्जा वाले ख़ास pockets में हमारा ब्रह्माण्ड स्थित है। बृहद ब्रह्माण्ड के ये pockets स्थिर होते हैं। बृहद ब्रह्माण्ड का एक पॉकेट का आकार हमारे ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे particle के बराबर है। एक पॉकेट से छोटा पार्टिकल हमारे ब्रह्माण्ड में नहीं रह सकता है। उससे छोटा होने पर वह बृहद ब्रह्माण्ड में चला जायेगा। हर पॉकेट में स्थित कण (particle) ऊर्जा के रूप में स्थित हैं। गति के समय ये particle यानि ऊर्जा एक पॉकेट से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। पुनः उस पॉकेट से गायब होकर उससे आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। इस तरह से कोई पार्टिकल गति करता है। यही कण आपस में मिलकर बड़े कण का रूप धारण करते हैं तथा बड़े बड़े पिंड का निर्माण करते हैं। जब भी कोई पिंड move करता है तो उसका हर पार्टिकल (उर्जा) अपने पॉकेट से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाते हैं। जैसे TV के स्क्रीन पर कोई भी चित्र सीधे move नहीं करता है बल्कि चित्र का हर पार्ट अपने स्थान से गायब होकर आगे प्रगट हो जाता है और दर्शक को लगता है कि चित्र move कर रहा है। उसी प्रकार हमारे इस त्रिआयामी ब्रह्मांड में किसी पिंड का हर particle (उर्जा) अपने स्थान(पॉकेट) से गायब होकर उससे आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाता है। गायब होने तथा प्रकट होने की प्रक्रिया तेजी से लगातार होती है और हमें लगता है कि वही पिंड आगे बढ़ रहा है। परन्तु वास्तव में वही पिंड आगे नहीं बढ़ रहा है बल्कि उसी तरह का (similar) पिंड आगे- आगे प्रगट होता जा रहा है। हमलोग भी जब गति करते हैं तो हमारे शरीर का हर पार्टिकल, जो कि अलग- अलग पॉकेट में स्थित है, अपने स्थान से गायब होकर आगे वाले पॉकेट में प्रकट हो जाती है। यानि हमारा शरीर गायब होकर नया शरीर प्रकट हो जाता है और हमें लगता है कि हमारा शरीर वही है जो पहले था। मैं यानि आत्मा जो शरीर को अनुभव करता है वह हमारे ब्रह्माण्ड के हर स्थान पर मौजूद है। जैसे ही शरीर वहां प्रकट होता है मैं (आत्मा) उसे यानि शरीर को अनुभव करने लगता है। हमारा निष्कर्ष है कि हमारे ब्रह्माण्ड का कोई भी पिंड गतिशील नहीं है बल्कि स्थिर है। हमें सिर्फ गतिशील मालूम पड़ते हैं। आत्मा रूपी तरंग पूरे ब्रह्मांड में स्थित है और हर भौतिक पदार्थ को अनुभव करता है तथा उसे शरीर के अनुरूप क्रियाशील करता है। वही आत्मा एक पेड़ के शरीर को पेड़ जैसा क्रियाशील करता है और हमारे शरीर को हमारे जैसा क्रियाशील करता है। वही आत्मा एक पत्थर को पत्थर की तरह, पानी को पानी की तरह, गैस को गैस की तरह क्रियाशील करता है। 
बृहद ब्रह्माण्ड Neutral अवस्था में है।हमारे ब्रह्माण्ड के कण बृहद ब्रह्माण्ड से आते हैं। जैसे ही कोई कण बृहद ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड में आता है,बृहद ब्रह्माण्ड में रिक्तता पैदा हो जाती है। बृहद ब्रह्माण्ड में रिक्तता पैदा होने के कारण वह हमारे ब्रह्माण्ड के कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को बृहद ब्रह्माण्ड अपनी ओर आकर्षित करता है जिसे हम गुरुत्वाकर्षण के रूप में अनुभव करते हैं। हमारे ब्रह्माण्ड के pockets पूरे वृहद ब्रह्माण्ड में नहीं हैं बल्कि कुछ क्षेत्र तक सीमित हैं, उसके परे सिर्फ वृहद ब्रह्माण्ड है। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के बाहर- बाहर वृहद ब्रह्माण्ड है जहां से वह हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है जिसके कारण हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बाहर की ओर जा रहे हैं और हमें लग रहा है कि हमारा ब्रह्माण्ड फैल रहा है। वास्तव में हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बाहर की ओर जा रहे हैं और वृहद ब्रह्माण्ड में विलीन होते जा रहे हैं। हमारे ब्रह्माण्ड के पूरे क्षेत्र में आकाश पॉकेट्स लगातार नहीं हैं बल्कि कुछ स्थानों पर ये पॉकेट मौजूद नहीं हैं यानि वहां बृहद ब्रह्माण्ड है जो कि हमें black hole के रूप में दिखाई देते हैं। ब्लैक होल भी वास्तव में बृहद ब्रह्मांड ही है और हमारे ब्रह्मांड का कोई भी पिंड उसकी ओर आकर्षित होता है और उसमें जाकर विलीन हो जाता है। हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बृहद ब्रह्मांड से आते हैं और अंततः फिर बृहद ब्रह्मांड में ही चले जाते हैं, अधिकांश पिंड बाहर की ओर स्थित बृहद ब्रह्मांड (कृष्ण सागर) में चले जाते हैं और कुछ पिंड black hole (कृष्ण विवर) से बृहद ब्रह्मांड में चले जाते हैं। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक वर्षा के बूंद की गति है।हम जानते हैं कि समुद्र से पानी वाष्प बनकर आकाश में जाती है, वहां वाष्प के कण आपस में मिलकर छोटे जलकण बनते हैं तथा जल कण मिलकर वर्षा के बूंद का रूप धारण करते हैं, ये बूंद पृथ्वी की ओर आकर्षित होकर गिरती है। ये अधिकांश बूंद नदियों के माध्यम से समुद्र में चली जाती है तथा कुछ बूंद कुओं के माध्यम से अंदर अंदर समुद्र में चली जाती है। यानि जो पानी सागर से वाष्प बनकर निकली थी पुनः सागर में पहुंच जाती है। हम कल्पना कर सकते हैं कि वर्षा के बूंद पर यदि कोई सभ्यता विकसित हो जाय तो वह सोचेगा कि हमारा यह बूंद (पृथ्वी) कहां से आया और कहां जा रही है। वह ज्यादा दूर तक नहीं देख सकता क्योंकि उसकी पहुंच अपने बूंद के आसपास तक ही है, जबकि हम जानते हैं कि वह बूंद सागर से आया है और पुनः सागर में ही चला जायेगा। उसी प्रकार हमारी पहुंच भी अपने बूंद यानि पृथ्वी के आस पास तक ही सीमित है और हम दूर तक नहीं देख पा रहे हैं।हम सिर्फ अपने ब्रह्मांड के पॉकेट में अवस्थित चीजों को ही देख सकते हैं या महशूस कर सकते हैं। बृहद ब्रह्मांड को हम नहीं देख सकते अतः यदि हम वृहद ब्रह्मांड की ओर देखेंगे तो हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा, ठीक उसी प्रकार लगेगा जैसे अंधेरे में आंख बंद कर लेने के बाद लगता है। यानि सिर्फ अंधेरे का सागर लगेगा । हम black hole को भी नहीं देख सकते अतः यह सिर्फ अंधेरा spot की तरह नजर आता है। ब्लैक होल हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है क्योंकि ब्लैक होल भी वास्तव में बृहद ब्रह्मांड ही है और वह हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है। वृहद ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड के pockets में निरंतर कण (उर्जा) आते रहते हैं और नए- नए पिंडों का निर्माण होते रहता है तथा ब्रह्माण्ड के बाहर की ओर आकर्षित होकर वृहद ब्रह्माण्ड में जाकर विलीन हो जाते हैं। यही प्रक्रिया चलते रहती है। 
हमारे ब्रह्माण्ड के अलावा अन्य ब्रह्माण्ड भी हो सकते हैं। यानि अलग ऊर्जा वाले पॉकेट समूहों में अलग दूसरा ब्रह्माण्ड अवस्थित हो सकता है। हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड सिर्फ अपने ही ब्रह्माण्ड के पॉकेट में रह सकते हैं अतः दूसरे ब्रह्माण्ड के बारे में हमें कोई बात पता नहीं चल सकता। हो सकता है जहां हमारी धरती है वहीं पर दूसरे ब्रह्माण्ड का कोई पिंड हो परन्तु अलग अलग phase में रहने के कारण एक दूसरे को महसूस नहीं कर सकते। यानि बृहद ब्रह्माण्ड के एक ही जगह पर हमारे ब्रह्माण्ड के साथ साथ कई अन्य ब्रह्माण्ड अवस्थित हो सकते हैं। पृथ्वी लोक के अलावा इन्द्र लोक, शिव लोक, विष्णु लोक इत्यादि हो सकते हैं। हर पल हमारे ब्रह्माण्ड में कणों का जन्म हो रहा है तथा पहले के कण बृहद ब्रह्माण्ड में विलीन भी होते जा रहे हैं। यही प्रक्रिया चलते रह रही है। हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर अपना शरीर बदलते हुए जारी रहेगी। यानि हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड बदलते रहेंगे, नए पिंड बनते रहेंगे और पुराने पिंड विलीन होते रहेंगे। हमारा ब्रह्मांड निरन्तर जारी रहेगा। हमारा सौर मंडल एक दिन कृष्ण सागर में यानि बृहद ब्रह्मांड में विलीन हो जाएगा परन्तु यह ब्रह्मांड बना रहेगा, नए पिंड, नए ग्रह, नये सौर मंडल तैयार होते रहेंगे। नई सभ्यता विकसित होती रहेगी। पुनः बृहद ब्रह्मांड में जाकर विलीन होते रहेंगे। यही प्रक्रिया चलते रहेगी। यानि हमारा ये ब्रह्माण्ड निरंतर रहेगा, हमारे ब्रह्माण्ड के आकाश पॉकेट्स रहेंगे परन्तु हमारे ब्रह्मांड के पिंड बदलते रहेंगे। हमारे ब्रह्मांड का कोई भी पिंड बृहद ब्रह्मांड में ठीक उसी प्रकार विलीन होता है जिस प्रकार एक बर्फ का ढेला पानी में विलीन हो जाता है। जिस प्रकार बर्फ पानी में विलीन होकर अपना अस्तित्व खो देती है उसी प्रकार हमारे ब्रह्मांड के पिंड बृहद ब्रह्मांड में विलीन होकर अपना अस्तित्व खो देती है और बृहद ब्रह्मांड का अंग बन जाती है।

2 टिप्‍पणियां: