1. हमारा ब्रह्मांड नये नजरिए से , क्या हमारा ब्रह्मांड ऐसा है ?
ब्रह्माण्ड कैसे बना ? यह कहाँ से आया ? यह कहाँ जा रहा है ? इत्यादि अनेकों प्रश्न ऐसे हैं जिसका जबाब खोजने के लिए मनुष्य सदियों से प्रयासरत्त है . वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक
दोनों तरह के प्रयास जारी हैं ! वैज्ञानिक अपने-अपने सिधान्तों एवं प्रयोगों द्वारा प्रयास कर रहें
हैं तो संत महात्मा लोग पौराणिक ग्रंथों एवं ध्यान का सहारा ले रहे हैं !
ब्रह्माण्ड क्या है ? कैसे बना ? कौन
बनाया ? कहाँ से आ रही है एव कहाँ जा रही है ? इत्यादि इन प्रश्नों पर अलग-अलग मत्त हैं . अलग-अलग वैज्ञानिकों
का अलग-अलग मत्त हैं . उसी प्रकार अलग-अलग अध्यात्मिक ज्ञानियों का
भी अलग-अलग मत हैं ! सभी धर्म अपने-अपने धर्मानुसार इस ब्रह्माण्ड की व्याख्या
करते हैं ! चाहे धार्मिक व्याख्या हो या वैज्ञानिक , अभी तक
किसी के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है ! सबका
अपना-अपना दर्शन है !सबकी अपनी-अपनी फिलोसफी है ! वैज्ञानिक हेड्रन
कोलाईडर बनाकर ये पता लगा रहे हैं कि ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति कैसे
हुई! अपने-अपने प्रयोगों पर विश्वाश किसी को नहीं है ! हो सकता है कि ब्रह्माण्ड
कि जो वैज्ञानिक अवधारना है वह बिलकुल ही गलत हो ! मनुष्य प्रारंभ से ही
ब्रह्माण्ड को प्रश्न भरी नजरों से देखता आया है , अपनी
जड़ें तलाशने में लगा हुआ है . ये सोंचता है कि आखिर मैं आया कहाँ से हूँ ?
ये ब्रह्माण्ड ये श्रृष्टि कहाँ से आयी ? इस
ब्रह्माण्ड का स्वरुप कैसा है ?
हमारे ब्रह्माण्ड के कई नमूने
बड़े-बड़े महापुरुषों एवं संतों तथा बैज्ञानिकों ने दिए हैं. महां विस्फोट से
उत्पन्न big -bang सिन्धांत का नमूना
अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा कल्पना की गयी सबसे ससक्त नमूना माना जाता है । इस सिधांत के अनुसार ,
हमारा ब्रह्माण्ड एक महा विस्फोट से
शुरू हुआ है तथा विस्फोट के बाद से ही यह फैल रहा है । इस सिधांत के अनुसार हमारा ब्रह्माण्ड कुछ दिनों
बाद पुनः सिकुड़ने लगेगा तथा पुनः बिग-बाँग की स्थिति आएगी तथा पुनः महा विस्फोट होगा.
इस प्रकार बार बार बिग बांग होता रहेगा ।
आइये अब हम अपने ब्रह्मांड को नये
नजरिए से देखते हैं :-
मैंने ब्रह्माण्ड का एक नमूना का
कल्पना किया है जिसे मैंने बृहद
ब्रह्माण्ड का नाम दिया है. बृहद ब्रह्माण्ड की
जो कल्पना की गयी है वह सिर्फ कोरी कल्पना नहीं है बल्कि उसका एक आधार है । एक
गणितीय एवं तार्किक आधार है । वृहद ब्रह्मांड की परिकल्पना को मैं आगे बताऊंगा, अभी मै बृहद ब्रह्माण्ड की परिकल्पना के कुछ रोचक परिणामों को बता रहा हूँ :-
हमारा बृहद ब्रह्माण्ड का मॉडल ये बताता है कि :-
1. हमारा ये ब्रह्मांड जिसमें हम सब रहते हैं , यह बृहद ब्रह्मांड मेंअवस्थित है।
2. ये ब्रह्माण्ड कोई महा-विस्फोट से प्रारंभ नहीं हुआ है
बल्कि यह बृहद ब्रह्माण्ड से निरंतर आते रहता है तथा पुनः यह उसी में यानि बृहद
ब्रह्माण्ड में समां जाता है और यही प्रक्रिया चलते रहती है।
3. हमारा ब्रह्माण्ड शुन्य और अनंत के मध्य ही अस्तित्व में
है। शुन्य और अनंत के बाहर हमारे ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व नहीं है। अब आप सोंच
रहे होंगे कि शून्य और अनंत के बाहर का क्या तात्पर्य है ? अनंत का तो कोई अंत ही नहीं है तो अनंत
के बाहर का क्या मतलब है ? आगे मैं आपको बताऊंगा कि अनंत कैसे
एक fix point है ।
4. हमारे ब्रह्माण्ड का कोई भी पिंड गतिशील नहीं है बल्कि यह
सिर्फ गतिशील मालूम पड़ते हैं. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चलचित्र में परदे पर कोई
भी चित्र गतिशील नहीं होता , हमें सिर्फ गतिशील
मालूम पड़ते हैं.
5. ब्लैक होल
हमारे ब्रह्माण्ड का अंग नहीं है बल्कि वह बृहद ब्रह्माण्ड का अंग है . ठीक
उसी प्रकार जिस प्रकार एक कुवें का जल वास्तव में समुद्र का अंग है। अन्दर-अन्दर कुवें का जल समुद्र से मिला हुवा है
. कुवें में हम कितना हूँ पानी डालते जाएँ तो वह कभी भर नहीं सकता बल्कि
अन्दर-अन्दर सागर में चला जायेगा और सागर का अंग बन जायेगा. उसी प्रकार
ब्लैक-होल में हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड जाते हैं तो वास्तव में वे बृहद
ब्रह्माण्ड में चले जाते हैं और बृहद ब्रह्माण्ड का अंग बन जाते हैं . हमारे
ब्रह्माण्ड के बाहर-बाहर बृहद ब्रह्माण्ड है जिसे हम कृष्ण सागर (Black
Sea) कह सकते हैं। तथा बीच-बीच में ब्लैक-होल के रूप में कुवें कि
तरह बृहद ब्रह्माण्ड ही है.
6. हमारे ब्रह्माण्ड के पिंड में गुरुत्वाकर्षण शक्ति , हमारे ब्रह्माण्ड का फैलना एवं ब्लैक-होल
की आकर्षण शक्ति ये तीनों एक ही कारण के परिणाम हैं और वो है बृहद ब्रह्माण्ड
द्वारा किया जा रहा खिचाव । बृहद
ब्रह्माण्ड से हमारे ब्रह्माण्ड में सबसे छोटे-छोटे कण आते रहते हैं । ये कण आपस में मिलकर बड़े आकर के पिंड का रूप
धारण कर लेते है । यानि ये ग्रह,उपग्रह,तारे आदि बन जाते हैं । ये पिंड वृहद ब्रह्मांड द्वारा अपनी ओर आकर्षित
किए जाते है जिसके कारण ये पिंड वृहद ब्रह्मांड कि ओर खिचे चले जा रहे हैं । ये
सारे पिंड अंततः बृहद ब्रह्माण्ड में ही चले जाते हैं और उसमें विलीन हो जाते हैं
जिस प्रकार वर्फ का टुकड़ा पानी मे विलीन हो जाता है। और यही प्रक्रिया चलते रहती
है। इसे समझने के लिए वर्षा की बूंद का उदहारण ले सकते हैं . वर्षा का जल समुद्र
से छोटे-छोटे कणों यानि वाष्प के रूप में आती है तथा आपस में मिलकर बूंद का रूप
यानि बड़े पिंड का रूप धारण करती और अंततः नदियों एवं कुछ कुवों के माध्यम से पुनः
सागर में चली जाती है. यही प्रक्रिया चलते रहती है।
7. हमारे ब्रह्मांड के अलावे और भी कई ब्रह्मांड समानान्तर
में यानि साथ साथ हो सकते हैं। जैसे देव
लोक,इन्द्रलोक इत्यादि ।
अगले विडियो मे हम
वृहद ब्रह्मांड के स्वरूप एवं इसके कार्य प्रणाली की चर्चा करेंगे । धन्यवाद ॥
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